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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन – MP Board Solutions

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन – MP Board Solutions

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Table of content (TOC)

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्न में से किसे मताधिकार प्रदान किया जा सकता है?
(i) अवयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(i) केवल पुरुषों को,
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(iv) केवल महिलाओं को।
उत्तर:
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को

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प्रश्न 2.
किसे वोट देने का अधिकार नहीं है? (2016, 18)
(i) पागल या मानसिक विकलांगों को
(ii) नाबालिगों को
(iii) न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित
(iv) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित में से किसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू मानी जाती है?
(i) प्रत्याशी के नामांकन पत्र जमा करने के बाद
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद
(iii) प्रचार कार्य प्रारम्भ होने के बाद
(iv) चुनाव सभा होने से।
उत्तर:
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. हमारे देश के सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र …………. वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं। (2018)
  2. कई दल मिलकर जब सरकार बनाते हैं, तब वह …………. सरकार कहलाती है। (2017)
  3. राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए ………… आयोग बनाया गया है।
  4. देश के प्रत्येक वयस्क महिला-पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार ……….. मताधिकार कहलाता है।

उत्तर:

  1. 18 वर्ष
  2. साझा
  3. निर्वाचन
  4. सार्वभौमिक वयस्क।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दल किसे कहते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 2.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कौन नियुक्त करता है? (2008, 15, 17)
उत्तर:
निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 3.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय नई दिल्ली में है।

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प्रश्न 4.
साझा सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी एक दल का बहुमत न आने पर जब कई दल मिलकर सरकार बनाते हैं, तब वह सरकार साझा सरकार कहलाती है। इसे गठबन्धन सरकार भी कहते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दलों की विशेषताएँ बताइए। (2014)
अथवा
राजनीतिक दल किसे कहते हैं? उसकी चार विशेषताएँ बताइए। (2008)
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

राजनीतिक दलों की विशेषताएँ –

  1. अपने विचारों के समर्थन में निरन्तर जनमत बनाना।
  2. एक विधान द्वारा संगठित और संचालित होना।
  3. निर्वाचन आयोग में पंजीकृत होना।
  4. पहचान हेतु एक चुनाव चिह्न होना।
  5. प्रमुख उद्देश्य निर्वाचन में विजय प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करना।
  6. शासक दल पर निगाह रखते हुए जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करना।

प्रश्न 2.
मध्यावधि निर्वाचन किसे कहते हैं? (2016)
उत्तर:
मध्यावधि निर्वाचन-यदि लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा को उसके कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया जाता है तो होने वाले चुनाव मध्यावधि चुनाव कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
निर्वाचन आयोग के कार्य लिखिए। (2008, 09, 10, 14, 16, 18)
अथवा
चुनाव आयोग के कार्यों को लिखिए। (2012)
उत्तर:
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 4.
निर्वाचक नामावली क्या है? इसका उपयोग बताइए। (2009)
उत्तर:
चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य निर्वाचक नामावली तैयार कराना है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व वह मतदान केन्द्र के अनुसार मत देने के योग्य नागरिकों की सूची तैयार करवाता है। इसे निर्वाचन नामावली कहते हैं। नवीन सूची में 18 वर्ष के नागरिकों के नाम जोड़े जाते हैं और मृत्यु या अन्य कारण से अन्यत्र स्थानों पर चले गये नागरिकों के नाम हटाये जाते हैं। निर्वाचक नामावली को मतदाता सूची के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5.
विपक्षी दल की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2008, 09, 13)
अथवा
भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों की भूमिका बताइए। (2008)
उत्तर:
विपक्षी दल की भूमिका-लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक संचालन और सत्तारूढ़ पार्टी पर अंकुश रखने के लिए विपक्षी दल का अत्यधिक महत्त्व है। हमारे देश में प्रजातन्त्र है और उसमें सरकार के प्रत्येक कार्य, उसकी प्रत्येक नीति की समालोचना किया जाना अनिवार्य है। यह कार्य विपक्षी दल ही कर सकते हैं। सरकार को तानाशाह बनने से रोकना और नागरिकों के अधिकारों का हनन न होने देना, यह सभी कार्य विपक्ष करता है विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। विधायिका में कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार-विमर्श और चर्चा होती है।

विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है। विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है। इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है, सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिए बाध्य किया जाता है। विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का सही प्रकार से पालन करने से सरकार प्रभावित होती है।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार किसे कहते हैं? मताधिकार के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है।

मताधिकार के सिद्धान्त
प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि मताधिकार का आधार क्या हो? क्या यह अधिकार राज्य के सभी नागरिकों को दिया जाए या कुछ चुने हुए व्यक्तियों को? इस सन्दर्भ में मताधिकार के प्रमुख सिद्धान्त अग्र प्रकार हैं –

  • जनजातीय सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि यह कोई विशेष अधिकार या सुविधा नहीं है वरन् यह प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करने वाला स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह अवधारणा प्राचीन यूनान, रोम तथा अन्य छोटे राष्ट्रों की सभाओं में प्रचलित था, जहाँ हाथ उठाकर मतदान किया जाता था। आधुनिक युग में मताधिकार के लिए नागरिकता की अनिवार्यता सम्भवतः इसी का प्रारूप है।
  • नैतिक सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि मानव के व्यक्तित्व के विकास के लिए यह अनिवार्य है कि उसे मताधिकार के माध्यम से यह निश्चित करने का अधिकार हो कि उनका शासन कौन करे। मताधिकार व्यक्ति में संवेदनशीलता को जन्म देता है तथा उसे सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रति सजग बनाता है।
  • वैधानिक अधिकार :
    मताधिकार एक प्राकृतिक अधिकार नहीं वरन् राजनीतिक अधिकार है। यह निर्धारण करना राज्य का कार्य है कि किसे मताधिकार मिलना चाहिए। प्रत्येक शासन अपनी परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति के आधार पर इसका निर्धारण करता है।
  • प्राकृतिक सिद्धान्त :
    17वीं तथा 18वीं शताब्दी में यह सिद्धान्त विशेष लोकप्रिय हुआ। इस सिद्धान्त के अनुसार सरकार मानव निर्मित संयन्त्र है। इसका आधार जनता की सहमति है। अर्थात् शासक को चुनने का अधिकार जनता का प्राकृतिक अधिकार है।
  • सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त लोकतान्त्रिक राज्यों में सर्वाधिक प्रचलित सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार होता है। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों और जनसम्प्रभुता के वातावरण में सर्वव्यापक मताधिकार की माँग ने जोर पकड़ा। इसमें वयस्कता का अधिकार सम्मिलित किया गया।
  • भारीकृत मताधिकार का सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार मतों को गिना नहीं जाता है वरन् उनका भार दिया जाता है। भार का आशय यहाँ महत्त्व से है अर्थात् सरकार के चयन में किसी प्रकार की विशिष्टता जैसे शिक्षा, धन या सम्पत्ति से विभूषित व्यक्ति के मत का भार एक आम आदमी से अधिक होना चाहिए।
  • बहुल मताधिकार का सिद्धान्त :
    मताधिकार के इस सिद्धान्त की मूल अवधारणा में यह आग्रह है कि व्यक्तियों के मतों की संख्या कुछ आधारों पर कम या अधिक होनी चाहिए। आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में ‘एक व्यक्ति एक मत’ का सिद्धान्त सर्व स्वीकृत है, परन्तु विगत वर्षों में बहुल मताधिकार की व्यवस्था भी अनेक राज्यों में प्रचलित रही है।

प्रश्न 2.
निर्वाचन से क्या आशय है? निर्वाचन आयोग के कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
निर्वाचन एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। देश में होने वाले सामान्य निर्वाचन, मध्यावधि निर्वाचन या उपचुनाव या निर्वाचन, सभी में समान प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया के प्रमुख बिन्दु हैं-

  1. मतदाता सूची तैयार करना
  2. चुनाव की घोषणा
  3. निर्वाचन हेतु नामांकन
  4. चुनाव चिह्न
  5. चुनाव अभियान
  6. मतदान
  7. मतगणना।

निर्वाचन आयोग के कार्य :
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं’

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर राजनीतिक दलों के प्रकार लिखिए।(2013)
उत्तर:
दलीय व्यवस्था के प्रकार-किसी राष्ट्र में राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर दल व्यवस्था को तीन वर्गों में बाँटा जाता है –

  • एकल दल (एक दलीय) प्रणाली :
    एक दलीय पद्धति या व्यवस्था उसे कहते हैं जिसमें केवल एक राजनीतिक दल होता है और वही समस्त राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करता है, जैसे-जनवादी चीन में एक दलीय प्रणाली है, वहाँ केवल साम्यवादी दल को ही मान्यता है। अन्य राजनैतिक विचार रखने वालों पर पाबन्दी है।
  • द्वि-दलीय प्रणाली :
    इस प्रणाली में केवल दो दल या दो प्रमुख दल होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है। इस राष्ट्र के दो प्रमुख दल हैं-डेमोक्रेटिक दल तथा रिपब्लिकन दल। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है।
  • बहुदलीय प्रणाली :
    बहुदलीय प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं, किन्तु सभी दलों की स्थिति समान नहीं होती। हमारे देश में बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली है। निर्वाचन में किसी एक दल का बहुमत में आना आवश्यक नहीं है।

जब किसी एक दल का बहुमत नहीं आता है, तो देश या प्रान्त में साझा सरकार बनाई जाती है। साझा या गठबन्धन सरकार में दो या अधिक दल शामिल होते हैं।

बहुदलीय प्रणाली का सबसे बड़ा दोष दल-बदल है। चुनावों के समय अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं। इस प्रणाली में राजनीतिक दलों की नीतियों में स्पष्ट अन्तर करना कठिन हो जाता है। बहुदलीय प्रणाली में व्यक्तिनिष्ठ दलों की संख्या बढ़ जाती है। आये दिन उनका विघटन और पतन होता रहता है।

प्रश्न 4.
दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनैतिक दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए। (2009)
उत्तर:
संसदीय लोकतन्त्र के लिए विभिन्न राजनीतिक दल आवश्यक हैं। राजनीतिक दल नागरिकों के संगठित समूह हैं, जो एक-सी विचारधारा रखते हैं। ये अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। राजनीतिक दल एक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं और सदैव शक्ति प्राप्त करने और उसे बनाये रखने का प्रयास करते रहते हैं।

दलीय व्यवस्था का महत्त्व :
दलीय व्यवस्था लोकतान्त्रिक शासन को सम्भव बनाती है। आधुनिक युग में शासन कार्य राजनीतिक दलों के सहयोग से होता है। यह शासन के नीति निर्धारण में सहयोग करते हैं और इनके सहयोग से नीतियों में परिवर्तन आसान होता है। दल-व्यवस्था के प्रभाव से सरकार जनोन्मुखी होती है व लोकहित में कार्य करती है। राजनैतिक दल शासन के निरंकुशता पर नियन्त्रण करते हैं। इनके माध्यम से जनता की आशाएँ और अपेक्षाएँ सरकार तक पहुँचती हैं। यह जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। इनके . . माध्यम से जनता को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। राजनीतिक दल नागरिक स्वतन्त्रताओं के रक्षक होते हैं। इनके द्वारा राष्ट्र की एकता स्थापित होती है। लॉर्ड ब्राइस का मत है कि, “दल राष्ट्र के मस्तिष्क को उसी प्रकार क्रियाशील रखते हैं, जैसे कि लहरों की हलचल से समुद्र की खाड़ी का जल स्वच्छ रहता है।”

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प्रश्न 5.
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया व भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया को लिखिए। (2008, 09)
अथवा
भारतीय चुनाव प्रणाली के कोई चार दोष लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया-निर्वाचन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) मतदाता सूची तैयारी करना :
निर्वाचन का यह पहला चरण है। जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व मतदाता सूची को तैयार करता है। कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष है इसमें अपना नाम सम्मिलित करवा सकता है। मतदाता पहचान पत्र भी जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा बनवाये जाते हैं। मतदाता पहचान पत्र के अभाव में नागरिक को अपनी पहचान के लिए अन्य कागजात लाने होते हैं।

(2) चुनाव की घोषणा :
प्रत्येक निर्वाचन प्रक्रिया का प्रारम्भ अधिसूचना जारी होने से होता है। लोकसभा के सामान्य अथवा मध्यावधि या उपचुनाव की अधिसूचना राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। विधान सभाओं के लिए अधिसूचना राज्यपाल द्वारा की जाती है। अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श के बाद राजपत्र में किया जाता है।

अधिसूचना जारी होने के पश्चात् निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाता है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता लागू हो जाती है।

(3) नामांकन पत्र :
चुनाव सूचना जारी होने के बाद चुनाव आयोग चुनावों की तिथि घोषित करता है जिसके अन्तर्गत एक निश्चित तिथि एक प्रत्याशी अपना नामांकन पत्र भरते हैं। नामांकन पत्र मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित व अनुमोदित होना चाहिए तथा प्रत्याशी का नाम मतदाता सूची में अवश्य होना चाहिए। नामांकन पत्र के साथ प्रत्याशी एक निश्चित धनराशि जमानत के रूप में जमा करवाता है। नामांकन पत्र भरे जाने की तिथि के बाद एक निश्चित तिथि में सभी नामांकन पत्रों की जाँच की जाती है और जिन प्रत्याशियों के नामांकन पत्र सही पाये जाते हैं उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया जाता है। इसके पश्चात् एक निश्चित तिथि तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकते हैं।

(4) चुनाव-चिह्न-चुनाव :
चिह्न ऐसे चिह्नों को कहते हैं जिन्हें कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार चुनाव के समय अपने चिह्न के रूप में प्रयोग करता है। चिह्न की पहचान से ही मतदाता अपना मत सही उम्मीदवार को दे सकता है।

(5) चुनाव अभियान :
चुनाव अभियान समस्त चुनावी प्रक्रिया का सबसे निर्णायक भाग है। वैसे ही आज के विज्ञापन के युग में चुनाव प्रचार का अत्यधिक महत्त्व है। चुनाव प्रचार के लिए चुनाव घोषणा-पत्र के साथ-साथ आम सभाएँ भी आयोजित की जाती हैं। चुनाव प्रचार की दृष्टि से आकर्षक नारे गढ़े व प्रचारित किये जाते हैं। नारे छपे पोस्टर जगह-जगह दीवारों पर चिपकाये जाते हैं। परम्परागत तरीकों से रिक्शा व लाउडस्पीकर का भी चुनाव प्रचार में भरपूर प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक दल को दूरदर्शन व आकाशवाणी द्वारा अपना प्रचार-प्रसार करने का एक निश्चित समय दिया जाता है।

(6) मतदान-निश्चित तिथि पर मतदाता चुनाव बूथ पर जाकर मत डालते हैं। मतदान के लिए सार्वजनिक छुट्टी रहती है व एक निश्चित समय तक ही मतदाता अपना वोट डाल सकते हैं। मतदान अधिकारी व विभिन्न प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों द्वारा यह पहचान किये जाने के पश्चात् कि मतदाता सही है, कोई धोखा नहीं है, उस मतदाता को मतपत्र दे दिया जाता है जो बूथ में जाकर गुप्त रूप से अपना मत डालता है। मत-पत्र दिये जाने के पूर्व चुनाव अधिकारी एक अमिट स्याही का निशान मतदाता की उँगली पर लगाता है, ताकि वह मतदाता दुबारा गलत ढंग से मत न डाल सके।

(7) मतगणना व परिणाम :
मतदान पूरा हो जाने के बाद चुनाव अधिकारी प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के सामने मतपेटियों को सीलबन्द कर देते हैं। प्रत्येक मतदान केन्द्र से मतपेटियाँ एक स्थान पर एकत्र कर ली जाती हैं जहाँ एक निश्चित तिथि पर प्रत्याशी व उनके प्रतिनिधियों के समक्ष मतपेटियों को खोला जाता है। उनके ही सामने मतों की गिनती चुनाव कर्मचारी करते हैं। सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारतीय चुनाव प्रणाली के दोष :
भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं –
(1) मतदान में पूर्ण भागीदारी का अभाव :
सार्वभौम वयस्क मताधिकार प्रणाली का उद्देश्य सभी नागरिकों को शासन में अप्रत्यक्ष भागीदार बनाना है। बड़े क्षेत्रों में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा चुनावों में एक बड़ी संख्या में मतदाता अपना वोट डालने नहीं जाते हैं। इस कारण मतदाताओं के बहुमत से निर्वाचित उम्मीदवार जनता का प्रतिनिधि नहीं होता है। अतः यह अपेक्षित है कि, सभी नागरिकों को मतदान में भाग लेना चाहिए।

(2) बाहुबल का प्रभाव :
कई बार कुछ प्रत्याशी हर तरीके से चुनाव में विजय हासिल करना चाहते हैं और वे चुनाव में अपराधियों की सहायता भी लेते हैं। हिंसा और शक्ति का प्रयोग कर लोगों को डरा-धमका कर वोट देने से रोकना, मतदान केन्द्र पर कब्जा करना, अवैध मत डलवाने का प्रयास करते हैं।

(3) सरकारी साधनों का दुरुपयोग :
चुनाव होने से पहले कुछ शासक दल. जनता को आकर्षित करने वाले वायदे करने लगते हैं, शासकीय कर्मचारियों/अधिकारियों की अपने हितों के अनुकूल पदस्थापना करते हैं तथा शासकीय धन और वाहनों व अन्य साधनों का दुरुपयोग करते हैं। इससे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

(4) फर्जी मतदान :
यह भी हमारी चुनाव प्रणाली की बड़ी समस्या है। कुछ व्यक्ति दूसरे के नाम पर वोट डालने चले जाते हैं। एक से अधिक स्थान पर मतदाता सूची में नाम लिखना, नाम न होते हुए भी वोट देने जाना आदि फर्जी मतदान है।

(5) चुनाव में धन का प्रयोग :
चुनाव में बढ़ता खर्च एक बड़ी समस्या है। प्रत्येक चुनाव में व्यय की सीमा निर्धारित है, परन्तु चुनाव में भाग लेने वाले अनेक प्रत्याशी बहुत अधिक धन व्यय करते हैं। धन व बल के अभाव में कई बार कुछ अच्छे और ईमानदार व्यक्ति चुनाव लड़ने में असमर्थ होते हैं। चुनाव में धन का दुरुपयोग व्यक्ति की अनैतिक भूमिका को दर्शाता है, जो चुनाव व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से गम्भीर समस्या है।

(6) निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या :
निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या कभी-कभी बहुत अधिक होती है इससे चुनाव प्रबन्ध में कठिनाई आती है। अधिक प्रत्याशियों के कारण मतदाता भी भ्रमित होता है।

(7) अन्य दोष :
वोट देने के लिए नागरिकों का मतदाता सूची में नाम होना आवश्यक है। प्रायः यह देखने में आता है कि अनेक लोगों के नाम मतदाता सूची से छूट जाते हैं। दूसरी ओर जिनकी मृत्यु हो गयी है या वे दूसरे स्थान पर चले गये हैं, तब भी उनके नाम मतदाता सूची में होते हैं। एक मतदान केन्द्र पर मतदाताओं की संख्या अधिक होने से भी कठिनाई आती है। एक प्रत्याशी कई बार दो या अधिक जगह पर चुनाव में खड़ा हो जाता है। दोनों स्थानों पर जीत होने की स्थिति में उसको एक स्थान को त्यागपत्र देना पड़ता है। जिसके कारण पुनः उपचुनाव होते हैं। इसमें शासकीय और प्रत्याशी के धन का अपव्यय होता है। ये सभी हमारी चुनाव प्रणाली के दोष हैं।

प्रश्न 6.
राजनीतिक दलों के कार्य और महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनीतिक दलों के कार्य बताइए। (2008, 12)
अथवा
‘राजनीतिक दलों के कोई चार महत्त्व लिखिए। (2017)
उत्तर:
राजनीतिक दलों के कार्य-राजनीतिक दल अनेक कार्य करते हैं। इनमें प्रमुख कार्य निम्नलिखित :

  • जनमत तैयार करना :
    राजनीतिक दल देश की समस्याओं को स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखकर जनमत तैयार करते हैं। वे पत्र-पत्रिकाओं तथा सभाओं में इन समस्याओं को सरल ढंग से जनता के सामने रखते हैं और फिर इस लोकमत को तथा जनता की कठिनाइयों को संसद में रखते हैं।
  • मध्यस्थता :
    राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को जनता के सामने तथा जनता की इच्छाओं को सरकार के सामने रखते हैं।
  • आलोचना :
    प्रजातन्त्रीय शासन में बहुमत प्राप्त दल अपनी सरकार बनाता है और अल्पमत दल विरोधी दल का कार्य करता है। विरोधी दलों की आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल गलत कार्य व नीतियाँ नहीं अपनाता।
  • राजनीतिक शिक्षा :
    राजनीतिक दल साधारण नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा देने का कार्य भी करते हैं। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल प्रेस, रेडियो, टी. वी. व सभाओं के माध्यम से अपनी नीतियों व जनता के अधिकारों का वर्णन करते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती हैं।
  • शासन पर अधिकार करना :
    राजनीतिक दलों का अन्तिम उद्देश्य शासन पर अधिकार करना होता है। वे प्रचार साधनों के द्वारा जनमत को अपने पक्ष में करते हैं और सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास करते हैं।

राजनीतिक दलों का महत्त्व :
राजनैतिक दल आधुनिक लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली की देन है। आधुनिक राजनैतिक जीवन में इनका निम्नलिखित महत्त्व है –

  • लोकमत के निर्माण में सहायक :
    राजनीतिक दल जनता को सार्वजनिक समस्याओं से परिचित कराते हैं तथा उनकी अच्छाइयों और बुराइयों की जानकारी देते हैं। इनसे जनता सार्वजनिक समस्याओं पर अपना मत बनाती है और इस प्रकार लोकमत का निर्माण होता है।
  • जनता में जागृति उत्पन्न करने में सहायक :
    राजनीतिक दलों के माध्यम से जनता को देश की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान होता है।
  • संसदीय सरकार के लिए अनिवार्य :
    संसदीय शासन-व्यवस्था में सरकार का निर्माण दलों के आधार पर होता है। संसद के निम्न सदन में जिस दल का बहुमत होता है, वह सरकार बनाता है।
  • लोकतन्त्र के लिए अनिवार्य :
    लोकतन्त्रात्मक प्रशासन में राजनीतिक दल अनिवार्य होता है। उनके बिना निर्वाचन की व्यवस्था करना कठिन है। दलों से ही सरकार बनती है और वही उस पर नियन्त्रण रखते हैं। उनके माध्यम से सरकार व जनता के बीच सम्पर्क स्थापित होता है और जनता की कठिनाइयों से सरकार अवगत होती है।
  • मतदान में सहायक :
    राजनीतिक दलों के सहयोग से नागरिकों को निर्वाचन के समय यह निर्णय लेने में कठिनाई नहीं होती कि उन्हें अपना मत किस उम्मीदवार को देना है। वह जिस दल के कार्यक्रम व नीति को पसन्द करता है, उसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देता है।
  • सरकार की निरंकुशता पर रोक :
    प्रजातन्त्र में बहुमत प्राप्त दलों की सरकार बनती है, इसलिए उसके निरंकुश बन जाने की सम्भावना रहती है। विरोधी दल उसकी स्वेच्छाचारिता पर रोक लगाकर उस पर नियन्त्रण रखते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मतदज समाप्त होने के कितने घण्टे पूर्व चुनाव प्रचार बन्द कर दिया जाता है?
(i) 24 घण्टे
(ii) 36 घण्ट
(iii) 48 घण्टे
(iv) 72 घण्टे।
उत्तर:
(iii) 48 घण्टे

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
(2009)
(i) 3 वर्ष
(ii) 4 वर्ष
(iii) 5 वर्ष
(iv) 6 वर्ष।
उत्तर:
(iv) 6 वर्ष।

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रिक्त स्थान पूर्ति

  1. नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार ……….. कहलाता है। (2008, 09, 14, 15)
  2. भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय …………. में है। (2010)
  3. नागरिकों द्वारा अपने देश के प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया ………… कहलाती है।
  4. जन-जन की शासन में सहभागिता ही लोकतन्त्र की …………है।
  5. निर्वाचन आयुक्तों की नियक्ति …………. करता है। (2008)

उत्तर:

  1. मताधिकार
  2. नई दिल्ली
  3. निर्वाचन
  4. प्राण शक्ति
  5. राष्ट्रपति।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमन्त्री करता है। (2008, 09)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयोग में 750 से अधिक दल पंजीकृत हैं। (2008)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
आम चुनाव की तिथियाँ चुनाव आयोग निर्धारित करता है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
बहुमत प्राप्त न करने वाले दल विपक्षी दल कहलाते हैं। (2013)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय मुम्बई में है। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 6.
प्रत्येक व्यक्ति के मत को समान महत्त्व मिलता है। (2014)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र 18 वर्ष है वोट डालने के अधिकारी है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए चुनाव आयोग बनाया गया है। (2018)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन – MPBoard Solutions

उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (ग)
  3. → (ख)
  4. → (क)
  5. → (घ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
बहुमत प्राप्त न करने वाले राजनैतिक दल? (2011)
उत्तर:
विपक्षी दल

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प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है? (2009)
उत्तर:
6 वर्ष

प्रश्न 3.
नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया कहलाती हैं। (2009)
अथवा
लोकतांत्रिक देशों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को कहते हैं। (2016)
उत्तर:
निर्वाचन

प्रश्न 4.
हमारे देश में वोट डालने की निम्नतम आयु कितनी है?
उत्तर:
18 वर्ष

प्रश्न 5.
अपने निर्धारित समय पर होने वाला निर्वाचन। (2009)
उत्तर:
सामान्य निर्वाचन अथवा आम चुनाव

प्रश्न 6.
चुनाव के समय पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश (2010)
उत्तर:
आचार संहिता

प्रश्न 7.
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार क्या कहलाता है? (2013)
उत्तर:
मताधिकार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से क्या आशय है? लिखिए।
उत्तर:
लोकतान्त्रिक राष्ट्रों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को निर्वाचन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मताधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, मताधिकार कहलाता है।

प्रश्न 3.
किन व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित रखा जाता है?
उत्तर:
मानसिक रूप से विकलांग या पागल या ऐसे व्यक्ति जो न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित हैं या ऐसे व्यक्ति जो भारत देश के नागरिक नहीं हैं, मत देने के अधिकारी नहीं होते।

प्रश्न 4.
भारत के राजनीतिक दल कितने भागों में विभक्त हैं? उनके नाम लिखिए।
अथवा
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले चार राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के राजनीतिक दल दो भागों में विभक्त हैं। इनमें कुछ राष्ट्रीय दल और शेष क्षेत्रीय दल हैं।
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले राजनीतिक दल हैं –

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी
  3. समाजवादी पार्टी तथा
  4. भारतीय साम्यवादी दल।

प्रश्न 5.
‘आम चुनाव’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आम चुनाव का आशय-हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किये जाते हैं। इन चुनावों को आम चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 6.
आम चुनाव की अधिघोषणा किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
लोकसभा व राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति तथा विधानसभाओं के लिए राज्यपाल मतदाताओं को चुनाव के बारे में सूचना देते हैं। इस अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श करने के बाद सरकारी गजट में होता है।

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प्रश्न 7.
‘नामांकन-पत्र’ से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
चुनाव से पहले उम्मीदवारों द्वारा नामांकन पत्र दाखिल किये जाते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसका नाम मतदाताओं की सूची में है और जो निश्चित योग्यताएँ रखता हो, चुनाव में खड़ा हो सकता है।

प्रश्न 8.
चुनाव में राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न क्यों आबंटित किये जाते हैं?
उत्तर:
चुनावों में अनेक राजनीतिक दल तथा निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं। उनकी पहचान के लिए तथा मतदान की सुविधा के लिए प्रत्येक प्रत्याशी तथा राजनीतिक दल को चुनाव आयोग चिह्न देता है।

प्रश्न 9.
निर्वाचन आयोग में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं। इन दोनों चुनाव आयुक्तों को भी मुख्य चुनाव आयुक्त के समान अधिकार प्राप्त हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से आप क्या समझते हैं? हमारे देश में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हमारे देश में कौन-सी शासन प्रणाली है? इस प्रणाली में निर्वाचन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
निर्वाचन से आशय एवं आवश्यकता-भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली में देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों से सरकार बनाई जाती है। निर्वाचन के द्वारा नागरिकों की शासन में भागीदारी होती है। नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया निर्वाचन कहलाती है। निर्वाचन के द्वारा एक निश्चित समय के लिए जन-प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है। हमारे राष्ट्र के नागरिक निर्वाचन में भाग लेकर अपने राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करते हैं। भारत एक विशाल और बहुभाषी राष्ट्र है। हमारे यहाँ सभी नागरिकों को समान रूप से प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। मताधिकार की यह प्रणाली सार्वजनिक वयस्क मताधिकार प्रणाली कहलाती है। भारत में मतदान की गोपनीय प्रणाली को अपनाया गया है। भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए, निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।

प्रश्न 2.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से क्या आशय है? (2009, 15)
उत्तर:
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार-नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है। भारत के प्रत्येक वयस्क महिला व पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है। इस प्रणाली में एक निर्धारित आयु पूरा करने के उपरान्त देश के सभी पात्र नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं।

प्रश्न 3.
मताधिकार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मताधिकार की विशेषताएँ :
मताधिकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. देश के सभी नागरिकों की शासन में हिस्सेदारी होती है।
  2. प्रत्येक नागरिक के मत को समान महत्त्व मिलता है।
  3. जन प्रतिनिधियों का शान्तिपूर्वक परिवर्तन सम्भव है।
  4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. नागरिकों में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न होती है।
  6. यह प्रणाली समानता के सिद्धान्त के अनुकूल है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं? लिखिए। (2011)
उत्तर:
राष्ट्रीय राजनीतिक दल वे हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश में होता है। इसका आशय यह नहीं है कि उनकी लोकप्रियता सभी राज्यों में एक जैसी है। उनका प्रभाव और इनकी शक्ति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त होने के लिए निम्न शर्त में से कोई एक का होना अनिवार्य है-जो दल एक या एक से अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में डाले गये मतों का कम से कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे अथवा यदि कोई दल लोकसभा के सदस्यों का कम से कम 2 प्रतिशत स्थान प्राप्त करे और यह स्थान न्यूनतम तीन राज्यों में होना चाहिए।

प्रश्न 5.
राजनीतिक दल के चार कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. ये देश के हित में अनुकूल जनमत बनाते हैं।
  2. निर्वाचन में विजय प्राप्त करना और सरकार बनानो इनका प्रमुख कार्य है।
  3. ये सरकार और जनता के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
  4. शासक दल की निरंकुशता पर नियन्त्रण लगाने का प्रयास करते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार सिद्धान्त के गुण-दोष बताइए।
‘उत्तर:
गुण :

  1. चूँकि प्रजातन्त्र का आशय प्रत्येक व्यक्ति की शासन में सहभागिता है, तो यह वांछनीय है कि मताधिकार सर्वव्यापक हो। जन-जन की शासन में सहभागिता ही प्रजातन्त्र की प्राणशक्ति है।
  2. जिसका सम्बन्ध सबसे हो, ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाने में सबका हाथ होना चाहिए।
  3. मताधिकार समानता के सिद्धान्त के अनुरूप है, जो प्रजातन्त्र का मूलरूप है।
  4. जब तक मताधिकार सर्वव्यापी नहीं होगा तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि शासन का उद्देश्य सार्वजनिक हितों की प्राप्ति है।

दोष :

  1. यह कहा जाता है कि जनता के बड़े भाग को मताधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है।
  2. मैकाले व हेनरीसेन जैसे विचारकों का कथन है कि इसमें निरक्षर और नासमझ लोगों को भी मताधिकार प्राप्त हो जाता है।

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